जीरे की फसल – जीरे की फसल में लग सकते है ये 3 रोग, बचाव के लिए करे यह घरेलू उपाय
Seen Media Digital Desk: नई दिल्ली – जीरे की फसल कृषि विशेषज्ञ डाॅ.रतनलाल शर्मा बताते हैं कि जीरे में ज्यादातर 3 प्रकार के रोग पाए जाते हैं, जिनमें छाचा रोग, झुलसा रोग, उखटा रोग शामिल हैं. यह तीनों रोग जीरे की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं. जीरा जालौर जिले की एक प्रमुख फसल है. जीरा एक ऐसी फसल है, जो सभी घरों के रसोईघर में पाई जाती है. छौंका लगाना हो या सब्जी का स्वाद बढ़ाना हो, जीरा हर जगह काम आता है.
लेकिन जीरे की फसल में रोग लगना किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीर बन जाता है. ऐसे में एक्सपर्ट के जरिये हम आपको बताएंगे कि आप कम लागत में कैसे अपनी फसल को बचा सकते है और जीरे की उन्नत खेती कर सकते हैं.
यह भी पढ़े – थायोफेनेट मिथाईल 2024- सर्दी में मावठ से जीरे की फसल को बचाने के लिए करे यह उपाय
जीरे की फसल
किसान दिनेश कुमार बताते हैं कि जीरे की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, चाहे वह रेतीली हो या चिकनी. वैसे चिकनी दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है. जीरा ठंडी जलवायु की फसल है और इसकी बुवाई नवम्बर के तीसरे सप्ताह से दिसम्बर के पहले सप्ताह तक होती है. इसके बाद जीरे की कटाई फरवरी-मार्च मे होती है. जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाएं और फसल पूरी पक जाए, तो तुरंत इसकी कटाई करते हैं. पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मंढाई कर दाना अलग कर लेते हैं. दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर ही साफ बोरों में इसका भंडारण करते हैं.
यह भी पढ़े – फसल बीमा योजना 2024- किसानो को मिलेगा 51 हजार फसल बीमा कृषि मंत्री श्री मीणा को दिया ज्ञापन
जीरे की फसल में होता है फायदा
कृषि विशेषज्ञ डाॅ. रतनलाल शर्मा बताते हैं कि जीरे की औसत उपज 7-8 क्विंटल बीज प्रति हेक्टयर प्राप्त हो जाती है. जीरे की खेती में लगभग 30 से 35 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का खर्च आता है. जीरे के दाने का 100 रुपए प्रति किलो भाव रहने पर 40 से 45 हजार रुपए प्रति हेक्टयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है. लेकिन किसान को कई बार नुकसान भी झेलना पड़ता है, जिसका प्रमुख कारण जीरे की फसल में लगने वाला रोग है.
जीरे की फसल
फसल में लगते हैं तीन प्रकार के रोग
कृषि विशेषज्ञ डाॅ. रतनलाल शर्मा बताते हैं कि जीरे में ज्यादातर तीन प्रकार के रोग पाए जाते हैं, जिनमें छाचा रोग, झुलसा रोग, उखटा या विल्ट रोग शामिल है. यह तीनों रोग जीरे की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं. इन रोगों के नियंत्रण की बात करें, तो किसानों को जीरे के खेत में प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन गोबर का खाद उपयोग करना होगा. किसानों के लिए यह एक रोग नियंत्रण का आसान तरीका है. अपने खेत की सफाई कर आस-पास में जितनी भी खरपतवार है, उनको काट देना चाहिए. जब जीरे की फसल तैयार हो जाए, तो गर्मियों में खेत में समर डिप फ्लाइंग करनी चाहिए.
यह भी पढ़े – Pm किसान 16th किस्त : 16वीं क़िस्त का इंतजार खत्म, रात को 12 बजे खाते में जमा हुए 4 हजार
जीरे की फसल
जैविक जीरा का ले सहारा
कृषि विशेषज्ञ डाॅ. रतनलाल शर्मा बताते हैं कि बढ़ते रसायनों के कारण मार्केट में जैविक जीरे की डिमांड बढ़ रही है. ऐसे में किसान खेत में सफाई कर सकते है. 100 किलो सड़े हुए गोबर में 1 किलो ट्राइकोडर्मा डालकर अच्छे से मिक्स कर छांव में कुछ दिनों तक रखें. 10-15 दिनों तक उसपर पानी का छिड़काव करते रहेंगे.
इससे उसके ऊपर एक हरी परत आ जाती है, जो ट्राइकोड्रोमा फंगस की होती है. अब इस गोबर का उपयोग आप जिस खेत में बुवाई कर रहे हो, वहां पर उसका छिड़काव कर सकते हैं. इससे जितने भी मिट्टी के रोग है वह सभी नियंत्रित हो जाएंगे. यह एक सस्ता और आसान तरीका है, जो फसल को रोगों से बचाता है.
3 Comments