Farming Rules – जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए करे इस फसल की खेती, नही पड़ेगी खाद की जरुरत…..
Seen Media Digital Desk – नई दिल्ली – Farming Rules – जमीन को बनाना हो उपजाऊ तो गर्मी में करें हरे खाद की खेती, खरीफ फसलों से मिलेगी बंपर पैदावारगर्मी के दिनों में ज्यादातर किसानों के खेत खाली रहते हैं. वही उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के इलाके में मूंग, उड़द की खेती किसान करते हैं. इसके अलावा भी हरी खाद के लिए सबसे बेहतर विकल्प ढैंचा को माना जाता है. इसमें नाइट्रोजन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. ढैंचा की जड़ों में गांठ होती है जिसमें राईजोबियम के कीड़े होते हैं जो तनों की मदद से वायुमंडल में नाइट्रोजन खींचकर जड़ों तक पहुंचाते हैं.
खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खाद का इस्तेमाल बढ़ रहा है जिसके चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है. अब इसका असर फसल के उत्पादन पर भी पड़ने लगा है. खेती की मिट्टी में अब ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा कम होती जा रही है जिसके चलते जमीन का उपजाऊपन प्रभावित हो चुका है. किसान अगर जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा को बढ़ाना चाहते हैं तो उन्हें रबी की फसल के बाद खेत में हरे खाद की खेती करनी चाहिए. इससे न सिर्फ खेतों की मिट्टी की दशा में सुधार होगा बल्कि अगली फसल का उत्पादन भी बढ़ जाएगा.
कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या के अध्यक्ष बी.पी शाही ने बताया कि खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों को साल में एक बार हरे खाद की खेती जरूर करनी चाहिए. हरी खाद एक तरह से दलहनी फसल है जो 44 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है. इस फसल के तैयार हो जाने के बाद ट्रैक्टर के रोटावेटर से खेत में ही मिला दिया जाता है जो वर्षा होने के बाद या खेत में पानी भरने से भी सड़ने लगते हैं. इससे मिट्टी के जैविक और रासायनिक गुण में वृद्धि होती है जिसके चलते खेत में जलधारण की क्षमता बढ़ जाती है. हर एक खाद की खेती से मिट्टी को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश मिलता है. इसके साथ ही जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ जाती है.
ढैंचा की खेती से मिट्टी होगी उपजाऊ
गर्मी के दिनों में ज्यादातर किसानों के खेत खाली रहते हैं. वही उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के इलाके में मूंग, उड़द की खेती किसान करते हैं. इसके अलावा भी हरी खाद के लिए सबसे बेहतर विकल्प ढैंचा को माना जाता है. इसमें नाइट्रोजन की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. ढैंचा की जड़ों में गांठ होती है जिसमें राईजोबियम के कीड़े होते हैं जो तनों की मदद से वायुमंडल में नाइट्रोजन खींचकर जड़ों तक पहुंचाते हैं. इसकी खेती से मिट्टी को 80 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 से 20 किलोग्राम फास्फोरस, 10 से 12 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर का लाभ मिलता है. इसके बाद अगली फसल के लिए यूरिया की खाद का एक तिहाई भाग कम इस्तेमाल करके भी भरपूर उत्पादन मिलता है. ढैंचा की खेती से मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ जाती है.
कब करें ढैंचा की खेती
ढैंचा की खेती अप्रैल से मई महीने के बीच की जाती है. यह 45 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है. ढैंचा की खेती के लिए 10 से 12 किलोग्राम प्रति एकड़ के दर से बीज की जरूरत होती है. जब फसल 2 फीट के लगभग हो जाए तो इसे रोटावेटर से खेत में ही जुताई कर सकते हैं. इस दौरान मिट्टी में नमी होना बेहद जरूरी है. जुताई के बाद वर्षा से होने वाली नमी से इसका अपघटन होना शुरू हो जाता है. अगर किसान इसका उत्पादन पाना चाहते हैं तो इसके लिए 150 दिन की फसल की देखभाल करनी होगी. किसानों को एक हेक्टेयर से 15 क्विंटल बीज की प्राप्ति हो सकती है. पंजाबी ढैंचा किसान की पहली पसंद मानी जाती है. इसके अलावा एन डी137 का इस्तेमाल क्षारीय मिट्टी के लिए कर सकते हैं.